
बूढ़े बरगद के नीचे बैठा एक मोची था आज परेशान
चिथड़े कपड़े, खाली जेब, सिकुड़े पेट के साथ लगाता था अपनी दुकान
सुबह से था पुलिस का पहरा
कुत्ते बार-बार सूंध रहे थे इस बूढ़े बरगद को
कहा जाता है इस पेड़ से लटक कर दी थी क्रांतिकारियों ने अपनी जान
शहीद दिवस के मौके पर आज नेता जी आएंगे
खूब भाषण देंगे, देश को बदलने की बात करेंगे
पर बूढ़ा मोची है आज परेशान
दुकान उजड़ चुकी थी, सोना होगा पूरे सात पेट को भूखे आज
फिर भी नेता जी बदलेंगे आज देश की किस्मत
तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजेंगे पूरा इलाका
लेकिन फिर भी बूढ़ा मोची और बरगद थे निराश
नहीं बदलेगी उनकी किस्मत क्योंकि हर बरस देखते हैं ऐसा तमाशा
महर्षि जी आप की इस कविता में रहस्यमयी सन्देश है जो आपके अन्दर के पत्रकार के दर्शन करा गया, मगर श्रीमान अभी साहित्यकार बनने के लिए शब्दों में और कसावट की जरूरत महसूस हो रही है ,,,,
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