जब पीछे पलटकर देखता हूं तो लगता है बहुत खो दिया है लेकिन फिर निगाहें सामने आसमा पर टिक जाती है। अरे नहीं..अभी तो पूरा आसमां इंतजार कर रहा है..आसमां की ओर बढ़ते हुए लगातार सोचता हूं कि आखिर मैं हूं कौन? क्या करता हूं। कभी मैं पत्रकार बन जाता हूं। कभी मैं कविता लिखने लगता हूं तो कभी कहानियां..लेकिन फिर भी पहचान की ओर लगातार बढ़ रहा हूं। यात्रा जारी है..
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