
जब पीछे पलटकर देखता हूं तो लगता है बहुत खो दिया है लेकिन फिर निगाहें सामने आसमा पर टिक जाती है। अरे नहीं..अभी तो पूरा आसमां इंतजार कर रहा है..आसमां की ओर बढ़ते हुए लगातार सोचता हूं कि आखिर मैं हूं कौन? क्या करता हूं। कभी मैं पत्रकार बन जाता हूं। कभी मैं कविता लिखने लगता हूं तो कभी कहानियां..लेकिन फिर भी पहचान की ओर लगातार बढ़ रहा हूं। यात्रा जारी है..
Tuesday, 15 November 2011
19 बरस पहले भी एक भंवरी, आज भी लड़ रही है न्याय के लिए

इस भंवरी के कारण उस भंवरी की जिंदगी में आया 'बवंडर'

राजस्थान के जोधपुर जिले की लापता भंवरी देवी के कारण उस भंवरी देवी की जिंदगी में बवंडर आ गया है, जिसका इस पूरे केस से कोई लेना देना नहीं है। राजस्थान कभी एक और भंवरी देवी के कारण पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना था।
राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है।
कई वेबसाइट और न्यूज एजेंसियों की खबरों पर गौर फरमाएं तो तस्वीर तो जोधपुर वाली भंवरी देवी की लगी है और कहानी पूरी भटेरी की भंवरी की है। ऐसे ही कुछ वेबसाइट्स पर भंवरी-मदेरणा की कहानी के साथ भटेरी वाली भंवरी देवी की तस्वीर लगाई गई है। लेकिन एक वेबसाइट ने तो हद कर दी। दोनों भंवरी की कहानी को मिलाकर दिया और ऐसे शो किया कि जैसे यह कहानी एक ही भंवरी की है। भटेरी की भंवरी को लेकर बवंडर जैसी फिल्म बन गई हो, लेकिन उसकी जिंदगी का बवंडर आज भी नहीं थमा है।
सियासत में सेक्स, हर बार महिलाओं को चुकानी पड़ी कीमत!
सियासत में जब-जब शराब और शबाब मिली, तब-तब बवाल मचा। रेतीले प्रदेश राजस्थान में भी इनदिनों एक ऐसा ही भवंडर आया हुआ है। किस-किस को यह बवंडर अपनी चपेट में लेगा, देखना बाकी है। जिस वीरों की भूमि में कभी वीर रस की कविताएं गूंजा करती थीं, आज वहां भंवरी-मदेरणा की सेक्स गाथा कही जा रही है।..लोग कहते हैं कि दूरियों से प्यार बढ़ता है

तब और अब
दादा...बरगद... क्रांति

फेसबुक कहानी-1

हर दिन की तरह उस दिन भी मैं सामान्यतौर पर ऑफिस पहुंचा। कम्प्यूटर ऑन किया और अपने काम में मशगूल हो गया। सबकुछ सामान्य था और की नजर में। ऑफिस में काम करने वाले मेरी तरह अन्य सहकर्मियों की तरह।
लेकिन घर से ऑफिस तक के दस मिनट के सफर में बहुत कुछ बदल गया था। जिस गलियों को पार कर के मैं ऑफिस तक का सफर तय करता था, आज वहां सन्नाटा ही सन्नाटा था। खिड़कियां बंद थीं। लेकिन उस घर के सामने भीड़ जमा था। अगरबत्ती की हल्की-हल्की सुगंध मेरे नखुनों से होती हुई मेरी सांसों में धुल गई थी। भीड़ में मौजूद हर चेहरा लटका हुआ था। जो खिड़की हमेशा खुली रहती थी। आज बंद थी। खामोशी। मातम। सन्नाटा।
ऑफिस के लिए लेट हो रहा था। मेरे कदम और तेज हो गए। कदमों के तेज होने के साथ ही दिल की धड़कन भी दौड़ रही थी। नहीं, भाग रही थी। कई गलियों को पार कर मेन रोड पर आकर बाएं मुड़ा तो सामने ऑफिस की भव्य बिल्डिंग दिखी। मेरे कदम तेजी से दफ्तर में घुस गए। बाहर सबकुछ सामान्य था..लेकिन अंदर.......