Tuesday, 15 November 2011

19 बरस पहले भी एक भंवरी, आज भी लड़ रही है न्याय के लिए

जयपुर. भंवरी देवी के कारण आज पूरी राजस्थान सरकार मुसीबत में है तो बरसों पहले एक और भंवरी देवी के कारण राजस्थान सरकार की पूरी दुनिया में बदनामी हो चुकी है। यह भंवरी देवी आज भी न्याय के लिए लड़ रही हैं।

19 साल पहले खुद पर हुए जुल्म के लिए भले ही भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला हो, लेकिन वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए लगातार लड़ रही हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है।

भंवरी कहती हैं, ‘भले ही कितने साल बीत गए हों, लेकिन मैं अंतिम सांस तक लड़ती रहूंगी। मैं नहीं चाहती हूं कि अब और कोई महिला मेरी तरह न्याय के इंतजार में भटके। मैं तो बस इतना चाहती हूं इस तरह की दुर्घटना से आहत स्त्री को तुरंत न्याय मिले। सरकार कानून तो बहुत बनाती हे लेकिन उसका पालन भी करे। यदि पालन नहीं कर सकती, तो उसे कानून बनाना बंद कर देना चाहिए।’

भंवरी का बड़ा बेटा कई साल पहले अपनी पत्नी के साथ गांव छोड़कर चला गया, क्योंकि उसे लगता था कि उसकी मां की वजह से उसकी बदनामी हो रही है। बचे हुए परिवार की चिंता करते हुए वह कहती हैं, ‘मुझे और मेरे परिवार को हमेशा खतरा बना रहता है।’ दरअसल गांव के लोग कभी उसे, तो कभी उसके बेटे बहू को तंग करते रहते हैं। ऐसे में उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वह जाए तो जाए कहां?

बॉलीवुड में भले ही उसे लेकर बवंडर जैसी फिल्म बन गई हो, लेकिन उसकी जिंदगी का बवंडर आज भी नहीं थमा है। फिल्म बनाने के दौरान नंदिता दास और फिल्म के निर्देशक जगमोहन मूंदड़ा उसके गांव भी गए थे। दोनों ने उसे अपनी बहन मानकर हमेशा मदद का वादा किया था, लेकिन फिल्म बनने के बाद कभी किसी ने उसकी जिंदगी में पलटकर नहीं देखा। भंवरी कहती हैं कि नंदिता ने मुझे बहन माना था। कहा था कि आगे हमेशा मिलती रहूंगी लेकिन आज तक दर्शन नहीं दिए और ना ही कभी कोई मदद ही की।

खुद पर बनी फिल्म को भी भंवरी नहीं देख पाईं। वह कहती हैं कि थोड़ी देर की फिल्म देखी फिर दिमाग खराब हो गया। फिल्म तो बन गई लेकिन कोई बदलाव नहीं आया।

विदेश से आई मदद


भंवरी की जिंदगी पर बनी फिल्म देखने के बाद दुनियाभर की महिलाओं ने उसकी मदद की थी। लंदन की औरतों ने दो लाख रुपए भेजे थे, तो चीन में यूनाईटेड नेशन की फोर्थ वर्ल्ड कांफ्रेस ऑन वुमेन में उसे बुलाया गया था। इसी प्रकार १९९४ में नीरजा भनोट मेमोरियल अवार्ड से भी उसे सम्मानित किया गया।

मिसाल बन चुकी हैं


भंवरी आज न सिर्फ अपने गांव की बल्कि पूरी दुनिया की औरतों के लिए एक मिसाल हैं। अपने गांव में उन्होंने न सिर्फ बाल विवाह जैसी कुरीतियों को बंद करवाया बल्कि लगातार कई मोर्चो पर आज भी लड़ रही हैं। भंवरी का कहना है कि अब उनके गांव में बाल विवाह नहीं होता है। गांव में कोई भ्रूण हत्या करवाने की कोशिश करता है तो भंवरी उसे समझाती हैं। यदि कोई सफाई करवाने की कोशिश करता है तो वह उसे जेल भेजने की धमकी देती हैं।

दूसरे के लिए लड़ने वाली भंवरी आज खुद न्याय की मोहताज हैं। अपने दर्द को बयां करती हुई वह कहती हैं कि मैं अब किससे कहूं। न तो सरकार सुनती है और न गांव के लोग। आए दिन गांववाले उन्हें व उनके परिवार को पीटने के लिए आते हैं। पुलिस के पास शिकायत ले जाने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती। कानून को गवाह चाहिए। लेकिन जिस समाज से वह ताल्लुक रखती हैं वह, जब साथ खड़े होने को तैयार नहीं तो भला गवाही कौन देगा?

उम्मीद की कोई किरण नजर ना आने के बावजूद, उनके अंदर कुछ ऐसा जज्बा है जो उन्हें निरंतर लड़ने की क्षमता और प्रेरणा देता है। उनका प्रण है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, वे इस लड़ाई को जारी रखेंगी।

इस भंवरी के कारण उस भंवरी की जिंदगी में आया 'बवंडर'

राजस्थान के जोधपुर जिले की लापता भंवरी देवी के कारण उस भंवरी देवी की जिंदगी में बवंडर आ गया है, जिसका इस पूरे केस से कोई लेना देना नहीं है। राजस्थान कभी एक और भंवरी देवी के कारण पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना था।


राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है।


कई वेबसाइट और न्यूज एजेंसियों की खबरों पर गौर फरमाएं तो तस्वीर तो जोधपुर वाली भंवरी देवी की लगी है और कहानी पूरी भटेरी की भंवरी की है। ऐसे ही कुछ वेबसाइट्स पर भंवरी-मदेरणा की कहानी के साथ भटेरी वाली भंवरी देवी की तस्वीर लगाई गई है। लेकिन एक वेबसाइट ने तो हद कर दी। दोनों भंवरी की कहानी को मिलाकर दिया और ऐसे शो किया कि जैसे यह कहानी एक ही भंवरी की है। भटेरी की भंवरी को लेकर बवंडर जैसी फिल्म बन गई हो, लेकिन उसकी जिंदगी का बवंडर आज भी नहीं थमा है।


सियासत में सेक्स, हर बार महिलाओं को चुकानी पड़ी कीमत!

सियासत में जब-जब शराब और शबाब मिली, तब-तब बवाल मचा। रेतीले प्रदेश राजस्थान में भी इनदिनों एक ऐसा ही भवंडर आया हुआ है। किस-किस को यह बवंडर अपनी चपेट में लेगा, देखना बाकी है। जिस वीरों की भूमि में कभी वीर रस की कविताएं गूंजा करती थीं, आज वहां भंवरी-मदेरणा की सेक्स गाथा कही जा रही है।

सियासत पहली बार शर्मसार नहीं हुई है। पहले भी कई सियासत नंगी हुई तो अवाम शर्मसार हुई। लेकिन इन औरतखोर नेताओं को कोई फक्र्र नहीं पड़ा। हर बार कीमत उस जिस्म को ही चुकानी पड़ी, जिसके नशे में सियासतदान मदमस्त होकर सियासत करते रहे। राजस्थान का मामला भले ही नया हो लेकिन राजनीति में शराब और शबाब के साथ सेक्स की परंपरा बरसों से हिंदुस्तानी सियासत में चली आ रही है। जब-जब सेक्स और सियासत की कॉकटेल सामने आई, हंगामा मचा। आइए ऐसे ही कुछ मामलों पर डालते हैं एक नजर...

बूढ़ा बदन उर्फ नारायण दत्त तिवारी

बात सबसे पहले कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता की करते हैं। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रह चुके नारायण दत्त तिवारी का रंग रसिया रूप देश की जनता ने कई बार देखा है। पिछली बार, तिवारी सेक्स स्कैंडल के कारण खूब चर्चा में रहे। आधे घंटे तक एक तेलुगू चैनल पर जब तिवारी की कथित रासलीला का प्रसारण किया जा रहा था तो इसकी गूंज पूरे हिंदुस्तान में सुनी गई। इस क्लिप में एक बूढ़ा जिस्म तीन महिलाओं के साथ अपनी हवस की आग बुझाता हुआ दिखा। कहा गया कि यह और कोई नहीं, बल्कि नारायण दत्त तिवारी हैं। 85 साल के तिवारी का नाम इससे पहले भी कई दफा कई महिलाओं के साथ जुड़ा।

युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुला

जम्मू व कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुला भी सेक्स स्कैंडल में फंस चुके हैं। हालांकि, बाद में वे पाक-साफ निकले। मामला २क्क्६ के एक सेक्स स्कैंडल का है। श्रीनगर पुलिस ने जब सबीना नाम की एक महिला को गिरफ्तार किया तो उसने कई चौकाने वाले खुलासे किए। नतीजा मुख्यमंत्री के साथ कई पूर्व मंत्री और आला अधिकारियों इस सेक्स स्कैंडल में फंसे। पूरे राज्य में कोहराम मचा। कुल 18 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इसमें राज्य के 2 पूर्व मंत्री समेत 1 आईएस अधिकारी, 1 डीआईजी, 2 डीएसपी शामिल थे।

कभी बॉलीवुड में राज, अब राजनीति की जया प्रदा

कहते हैं कि राजनीति में यदि आएं हैं तो दाग तो लगेंगे ही। ऐसा ही कुछ पिछले लोकसभा चुनाव में बॉलीवुड की अभिनेत्री और सपा की उम्मीदवार जया प्रदा के साथ हुआ। बरसों तक बड़े परदे पर अपने हुस्न का जलवा दिखा चुकीं जया उस वक्त रो पड़ीं, जब उन्होंने अपने ही अश्लील पोस्टर रामपुर में देखे। रामपुर उनका संसदीय क्षेत्र। रामपुर की गलियों से निकल कर ये पोस्टर दिल्ली तक की राजनीति में बवाल मचाया। जया की आंखों में आंसू तक आए। इल्जाम बागी नेता आजत खान पर लगा। यह बात खुद जया ने कही। वैसे मीडिया में अक्सर जया और अमर सिंह के संबंधों को लेकर भी छिटाकशी होती रहती है।

एक कवियत्री के साथ मंत्री का अमरप्रेम

अपनी कविताओं ने कईयों के दिल पर राज करने वाली मधुमिता की उसके घर पर ही गोलीमार कर हत्या कर दी गई। घटना मई 2003 की है। लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी ने उस दिन गोलियों की आवाज सुनी थी। जब लाश का पोस्टमार्टम हुआ तो चौंकाने वाली खबर बनना लाजिमी थी। मधुमिता गर्भवती थी। शक की सुई तत्कालीन सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की ओर मुड़ी। लखनऊ की जनता के साथ अब पूरा देश दोनों के संबंधों को जान चुका था। हत्या के पीछे वजह यह बताई गई कि मधुमिता-अमरमणि त्रिपाठी के संबंधों के कारण वह गर्भवती हो गई थी। लेकिन अमरमणि नहीं चाहते थे कि वह मां बने। मधुमिता अपी जिद पर अड़ी थी। अंत में मधुमिता को गोली मार दी गई। फिलहाल अमरमणि जेल में हैं।

विधायक बनने के ख्वाब ने लाया मंत्री के करीब

उत्तर प्रदेश के एक मंत्री आनंदसेन की जिंदगी में भी एक लड़की आई। वह लॉ की स्टूडेंट शशि थी। शशि अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए आनंदसेन के करीब होती गई। शशि चाहती थी कि वह विधानसभा का चुनाव लड़े और लखनऊ की विधानसभा में बैठे। शार्टकट के रुप में उसने आनंदसेन को चुना। शशि के पिता खुद एक राजनीतिक कार्याकर्ता थे। आनंदसेन ने भी उसकी आंखों में बसे इस ख्वाब को देख लिया था। फिर शुरू हुआ वायदों का दौर। वायदे बढ़ते गए, जिस्मानी दूरियां मिटती गईं। 22 अक्टूबर 2007 को शशि गायब हुई। लंबी छानबीन और धड़पकड़ के बाद पता चला कि वह इस दुनिया से जा चुकी है। उसकी हत्या हो गई है।

..लोग कहते हैं कि दूरियों से प्यार बढ़ता है


..लोग कहते हैं कि दूरियों से प्यार बढ़ता है
आखिर ऐसी दूरियां किस काम की
जहां प्यार बढ़ाने के लिए फासलों का सहारा लेना पड़े

सोचा था तुमसे दूर जाऊंगा
तो तुम मेरे और करीब आओगी
मैं दूर जाता रहा, तुम दूर जाती रही

एक दिन प्यार दूरियों में ऐसा बदला
कि मैं चाह कर भी तुम्हें वापस ना पा सका
सोचा था कि मैं तुम्हें मना लूंगा, घर ले आऊंगा
मैं गलत था, तुम जा चुकी थी, बहुत दूर..

तब और अब

मेरे हाथों के स्पर्श से वह कांप रही थी
मेरी नजरों से वह शरमा रही थी
मेरे ओंठों ने जब उसे चूमा
तो उसकी आंखे खुद ब खुद बंद हो रही थीं

अब ऐसा कुछ नहीं होता है
न वह कांपती है और न शरमाती
बस वह अब नफरत करती है मुझसे

दादा...बरगद... क्रांति

बूढ़े बरगद के नीचे बैठा एक मोची था आज परेशान
चिथड़े कपड़े, खाली जेब, सिकुड़े पेट के साथ लगाता था अपनी दुकान
सुबह से था पुलिस का पहरा
कुत्ते बार-बार सूंध रहे थे इस बूढ़े बरगद को
कहा जाता है इस पेड़ से लटक कर दी थी क्रांतिकारियों ने अपनी जान
शहीद दिवस के मौके पर आज नेता जी आएंगे
खूब भाषण देंगे, देश को बदलने की बात करेंगे
पर बूढ़ा मोची है आज परेशान
दुकान उजड़ चुकी थी, सोना होगा पूरे सात पेट को भूखे आज
फिर भी नेता जी बदलेंगे आज देश की किस्मत
तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजेंगे पूरा इलाका
लेकिन फिर भी बूढ़ा मोची और बरगद थे निराश
नहीं बदलेगी उनकी किस्मत क्योंकि हर बरस देखते हैं ऐसा तमाशा

फेसबुक कहानी-1

हर दिन की तरह उस दिन भी मैं सामान्यतौर पर ऑफिस पहुंचा। कम्प्यूटर ऑन किया और अपने काम में मशगूल हो गया। सबकुछ सामान्य था और की नजर में। ऑफिस में काम करने वाले मेरी तरह अन्य सहकर्मियों की तरह।


लेकिन घर से ऑफिस तक के दस मिनट के सफर में बहुत कुछ बदल गया था। जिस गलियों को पार कर के मैं ऑफिस तक का सफर तय करता था, आज वहां सन्नाटा ही सन्नाटा था। खिड़कियां बंद थीं। लेकिन उस घर के सामने भीड़ जमा था। अगरबत्ती की हल्की-हल्की सुगंध मेरे नखुनों से होती हुई मेरी सांसों में धुल गई थी। भीड़ में मौजूद हर चेहरा लटका हुआ था। जो खिड़की हमेशा खुली रहती थी। आज बंद थी। खामोशी। मातम। सन्नाटा।


ऑफिस के लिए लेट हो रहा था। मेरे कदम और तेज हो गए। कदमों के तेज होने के साथ ही दिल की धड़कन भी दौड़ रही थी। नहीं, भाग रही थी। कई गलियों को पार कर मेन रोड पर आकर बाएं मुड़ा तो सामने ऑफिस की भव्य बिल्डिंग दिखी। मेरे कदम तेजी से दफ्तर में घुस गए। बाहर सबकुछ सामान्य था..लेकिन अंदर.......